Exclusive: एक बार क्लाउड सीडिंग करने पर कितना खर्च? दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दी जानकारी

Exclusive: एक बार क्लाउड सीडिंग करने पर कितना खर्च? दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दी जानकारी
By : | Edited By: ज़हीन तकवी | Updated at : 29 Oct 2025 03:57 PM (IST)

दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार द्वारा प्रदूषण कम करने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग के दो ट्रायल उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं रहे. पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि इस असफलता की मुख्य वजह बादलों में नमी की कमी रही. एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत के दौरान मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि एक बार क्लाउड सीडिंग करने का खर्च करीब 30 से 35 लाख रुपये आता है. जबकि 9-10 बार के ऑपरेशन में लगभग 3 करोड़ रुपये तक का खर्च होता है. 'इस वजह से सफल नहीं हुआ ट्रायल' उन्होंने कहा कि आईआईटी कानपुर और दिल्ली सरकार ने मिलकर दो बार क्लाउड सीडिंग का प्रयास किया, लेकिन पर्याप्त नमी न होने के कारण बारिश नहीं हो सकी.

सिरसा ने आगे बताया कि मंगलवार को ट्रायल के दौरान वातावरण में केवल 15 फीसदी नमी थी, जबकि कृत्रिम वर्षा के लिए कम से कम 50 फीसदी नमी जरूरी होती है. 'फिर से करेंगे ट्रायल' हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि आईआईटी कानपुर की टीम ने जो नया केमिकल मिश्रण तैयार किया है, उससे भविष्य में कम नमी के बावजूद भी कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. मंत्री ने बताया कि भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार शाम तक नमी बढ़ने की संभावना है. इसलिए जैसे ही मौसम अनुकूल होगा, क्लाउड सीडिंग का अगला ट्रायल फिर से किया जाएगा. उन्होंने कहा हमारी कोशिश जारी रहेगी.

AAP के सवाल पर दिया जवाब इस बीच, आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने इस प्रयोग पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि यह जनता के पैसे की बर्बादी है. इस पर जवाब देते हुए सिरसा ने कहा जब उनकी सरकार थी, तब वो दस साल तक क्लाउड सीडिंग की बात करते रहे लेकिन एमओयू तक साइन नहीं किया. हमने प्रयास किया, पहली बार ट्रायल किया, नतीजे तुरंत नहीं मिले तो क्या हुआ- हम हार नहीं मानेंगे. सिरसा ने आगे कहा कि सौरभ भारद्वाज की आलोचना केवल खिसियाहट है क्योंकि उनकी सरकार ने सिर्फ बातें कीं, जबकि मौजूदा सरकार ने काम करके दिखाया.

IIT कानपुर के वैज्ञानिकों की मदद से हो रहा ट्रायल गौरतलब है कि दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा की कोशिश आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की मदद से की गई है. इसका मकसद वायु प्रदूषण कम करना और राजधानी की वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है. यह तकनीक अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में पहले से सफल रही है, जहां इसे सूखे और प्रदूषण से निपटने के लिए अपनाया गया है.

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