दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अब भी लोगों के परेशानी का सबब बना हुआ है. इस दमघोंटू और जहरीली हवा से राहत दिलाने के लिए सरकार की ओर से की गई कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) की कोशिश असफल रही है. इसके पीछे की वजह बताई गई है खुद IIT कानपुर के द्वारा. IIT कानपुर के प्रोफेसर मनीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया के दौरान बादलों में केवल 15% नमी मौजूद थी, जो बारिश के लिए बेहद कम है. इसी कारण दिल्ली में बारिश नहीं हो सकी.
हालांकि इस प्रयोग से उपयोगी डेटा एकत्र किया गया, जो आगे की परियोजनाओं में मददगार साबित होगा. क्यों नहीं पो पाई बारिश? IIT कानपुर की टीम ने दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के लिए वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई थी, लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया. बादलों में नमी का स्तर सिर्फ 15% पाया गया, जबकि बारिश के लिए यह कम से कम 60% होना जरूरी होता है. इतनी कम नमी के कारण बर्फ के क्रिस्टल नहीं बन पाए, जिससे बूंदें गिरने की संभावना लगभग खत्म हो गई. इस वजह से कृत्रिम बारिश का प्रयास इस बार सफल नहीं हो सका.
क्या क्लाउड सीडिंग पूरी तरह से फेल? जी नहीं, क्लाउड सीडिंग पूरी तरह से फेल भी नहीं है. IIT कानपुर का मानना है कि भले ही बारिश नहीं हुई, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रयोग पूरी तरह व्यर्थ नहीं गया. दिल्ली में कुल 15 मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए गए थे, जहां वायु प्रदूषण और नमी के स्तर की निरंतर माप की गई. डेटा के अनुसार, PM 2. 5 और PM 10 में 6–10% तक की कमी दर्ज की गई.
इसका मतलब है कि क्लाउड सीडिंग ने भले बारिश नहीं कराई, पर हवा में कुछ सुधार जरूर किया है. भविष्य के लिए मिले संकेत IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह डेटा भविष्य के प्रयोगों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा. आने वाले महीनों में टीम इस जानकारी के आधार पर और बेहतर योजना बनाएगी. प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि अगर भविष्य में पर्याप्त नमी मौजूद हो तो क्लाउड सीडिंग के जरिए दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में बड़े परिणाम मिल सकते हैं. फिलहाल यह प्रयोग भले विफल रहा हो, लेकिन इससे मिली सीख आने वाले प्रयासों को सफल बनाने की दिशा तय करेगी.







