तेंदुए को कैंसर और डायबिटीज तो बाघिन को मोतियाबिंद, जानवरों को क्यों हो रहीं इंसानों जैसी बीमारियां?

तेंदुए को कैंसर और डायबिटीज तो बाघिन को मोतियाबिंद, जानवरों को क्यों हो रहीं इंसानों जैसी बीमारियां?
By : | Edited By: मानसी | Updated at : 14 Oct 2025 03:18 PM (IST)
Quick Summary

This article highlights: तेंदुए को कैंसर और डायबिटीज तो बाघिन को मोतियाबिंद, जानवरों को क्यों हो रहीं इंसानों जैसी बीमारियां?. In context: हमने अक्सर सुना है कि डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, या मोतियाबिंद जैसी बीमारियां सिर्फ इंसानों को होती हैं अब हैरान करने वाली सच्चाई यह है कि ये गंभीर बीमारियां अब चिड़ियाघर में रहने वाले जानवरों को भी हो रही हैं. Stay tuned with The Headline World for more insights and details.

हमने अक्सर सुना है कि डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, या मोतियाबिंद जैसी बीमारियां सिर्फ इंसानों को होती हैं. अब हैरान करने वाली सच्चाई यह है कि ये गंभीर बीमारियां अब चिड़ियाघर में रहने वाले जानवरों को भी हो रही हैं. गोरखपुर प्राणी उद्यान में रहने वाले शेर, बाघ और तेंदुए जैसे ताकतवर और खूंखार माने जाने वाले जानवर भी अब ऐसी बीमारियों की गिरफ्त में आ चुके हैं, जो पहले सिर्फ इंसानों में पाई जाती थीं. चलिए जानते हैं कि जानवरों को क्यों इंसानों जैसी बीमारियां हो रही हैं?

चिड़ियाघर में बीमार हो रहे जानवर

गोरखपुर चिड़ियाघर में हाल ही में कई घटनाएं सामने आईं, जिसमें बाघिन की दोनों आंखों में 90 प्रतिशत मोतियाबिंद पाया गया है. उसकी रोशनी लौटने का अनुमान बहुत कम है. इससे पहले एक तेंदुए को कैंसर हो गया था, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. अब एक और तेंदुआ डायबिटीज, थायरॉइड और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों से जूझ रहा है. इसके शरीर में ट्राइग्लिसराइड की मात्रा बहुत ज्यादा पाई गई है, जिससे सूजन हो गई थी. खून की जांच के बाद ये सब बीमारियां सामने आईं. इसके अलावा कुछ समय पहले बब्बर शेर की मौत मिर्गी का दौरा पड़ने से हो गई थी. यह बहुत ही असामान्य घटना थी, क्योंकि मिर्गी जैसी बीमारी आमतौर पर शेरों में नहीं पाई जाती है.

जानवरों को क्यों हो रहीं इंसानों जैसी बीमारियां?

चिड़ियाघर का माहौल और जंगल की आजादी में बहुत फर्क होता है. विशेषज्ञों का मानना है कि कैद में रहने से जानवरों की लाइफस्टाइल और खानपान पूरी तरह बदल जाता है. चिड़ियाघर में रहने वाले जानवरों का जीवन जंगल की तुलना में बिल्कुल अलग होता है. जंगल में जानवर मीलों तक दौड़ते-घूमते हैं, लेकिन चिड़ियाघर में उनके पास घूमने के लिए बहुत ही कम जगह होती है. यह उनकी को फिजिकल एक्टिविटी को कम कर देता है. जंगल में जानवर अपने शिकार खुद करते हैं, जिससे वे एक्टिव रहते हैं. लेकिन चिड़ियाघर में उन्हें तय समय पर तय मात्रा में खाना दिया जाता है. इससे उनका मेटाबॉलिज्म बिगड़ सकता है.

बंद पिंजरे और रोज एक जैसी लाइफस्टाइल की वजह से जानवर मानसिक तनाव में आ सकते हैं. यह भी उनकी सेहत पर बुरा असर डालता है. चिड़ियाघर में ज्यादातर जानवरों की एक्टिविटी सीमित हो जाती हैं, जिससे उनमें मोटापा, हार्मोनल बदलाव और मेटाबॉलिक बीमारियां पनपने लगती हैं और इन सभी कारणों से जानवरों को इंसानों जैसी बीमारियां हो रहीं हैं.

चिड़ियाघर में जानवरों का इलाज

गोरखपुर प्राणी उद्यान के मुख्य वन्यजीव चिकित्सक डॉ. योगेश प्रताप सिंह बताते हैं कि चिड़ियाघर में जानवरों की नियमित जांच की जाती है. जंगलों में ये बीमारियां पता नहीं चल पाती, क्योंकि वहां किसी तरह की जांच संभव नहीं होती है. लेकिन चिड़ियाघर में खून की जांच, आंखों की जांच और अन्य टेस्ट समय-समय पर होते हैं. इसी कारण से तेंदुए में डायबिटीज और थायरॉइड जैसे रोगों का समय पर पता चल सका और बाघिन का भी इलाज किया जा रहा है.

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