Uttarakhand: 'पति नास्तिक है, परंपराएं नहीं मानता', हाई कोर्ट पहुंची पत्नी, मांग लिया तलाक

Uttarakhand: 'पति नास्तिक है, परंपराएं नहीं मानता', हाई कोर्ट पहुंची पत्नी, मांग लिया तलाक
By : | Updated at : 30 Oct 2025 01:22 PM (IST)

उत्तराखंड हाई कोर्ट में बेहद हैरान करने वाला मामला सामने आया है. जहां एक महिला ने अपने पति से सिर्फ इसलिए तलाक मांगा है क्योंकि वो नास्तिक है और हिन्दू धार्मिक परंपराओं को नहीं मानता है. महिला ने कोर्ट में बताया कि शादी के बाद उसके पति ने घर से मंदिर तक हटवा दिया और देवी-देवताओं की मूर्तियां हटवा दीं. धार्मिक आस्था और विश्वास के टकराव का ये मामला चर्चा में बना हुआ है. दरअसल हल्द्वानी में रहने वाली एक महिला पूनम ने अपने पति भुवन चंद्र सनवाल से तलाक लेने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है.

महिला का आरोप है कि उसका पति नास्तिक है और हिंदू धार्मिक परंपराओं को नहीं मानता है. पति के नास्तिक होने पर मांगा तलाक महिला ने अदालत में कहा कि विवाह के बाद पति ने घर का मंदिर हटवा दिया और देवताओं की मूर्तियां पैक कर बाहर रखवा दीं. इतना ही नहीं जब उनके बेटे के नामकरण संस्कार की बात आई तो पति ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके आध्यात्मिक मार्ग में ऐसे संस्कारों की अनुमति नहीं है. पूनम ने बताया कि उसका पति और ससुराल पक्ष स्वयंभू संत रामपाल के अनुयायी हैं और किसी भी हिंदू रीतिरिवाज में विश्वास नहीं रखते. जबकि वह स्वयं धार्मिक प्रवृत्ति की महिला है और रोज पूजा-पाठ करना चाहती है.

धार्मिक मान्यताओं को लेकर दोनों के बीच लगातार विवाद बढ़ते गए, जिसके चलते पूनम ने पारिवारिक न्यायालय, नैनीताल में तलाक की अर्जी दाखिल की. हालांकि, अदालत ने उसकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह मामला आपसी मतभेदों से संबंधित है और तलाक का उचित आधार नहीं बनता. इसके बाद महिला ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने काउंसलिंग के लिए दंपत्ति को भेजा मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रवींद्र मैथाणी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने कहा कि पति-पत्नी के बीच अब भी आपसी समझ और सौहार्दपूर्ण समाधान की संभावना बनी हुई है. अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि दंपति का सात वर्षीय बेटा है, इसलिए उसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए दोनों को परामर्श (काउंसलिंग) के लिए भेजा जाए, ताकि सुलह का रास्ता खोजा जा सके.

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि धार्मिक विश्वास में मतभेद वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा कर सकते हैं, लेकिन संवाद और समझदारी से रिश्ते को संभालना संभव है. अदालत ने दोनों पक्षों को सलाह दी कि वे आपसी सहमति से बेटे के हित में कोई ठोस निर्णय लें. अब मामले की अगली सुनवाई पर काउंसलिंग रिपोर्ट के आधार पर अदालत आगे की कार्रवाई करेगी.

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