उत्तराखंड के 11 जिलों में निष्क्रिय पड़े जिला विकास प्राधिकरणों को सरकार अब नए सिरे से सक्रिय करने की तैयारी में है. इसके लिए आवास विभाग संशोधित नियमावली तैयार कर रहा है, जिसे जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी के लिए लाया जाएगा. नए प्रावधानों के तहत अब प्राधिकरणों की सीमा हवाई दूरी के बजाय जमीनी दूरी के आधार पर तय की जाएगी. पहले सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में हाईवे से 50 मीटर और मैदानी क्षेत्रों में 100 मीटर हवाई दूरी तक का क्षेत्र प्राधिकरण के दायरे में रखा था, जिससे कई क्षेत्रों में अनावश्यक रूप से प्राधिकरण की परिधि बढ़ गई थी. विवादों के चलते इन पर रोक भी लगाई गई थी.
बाद में इन्हें पुनः सक्रिय तो किया गया, लेकिन नक्शा पास कराने जैसी अनिवार्यता समाप्त कर दी गई थी. नए नियमों में शुल्क में छूट और नियम पालन पर जोर अब सरकार इन प्राधिकरणों को व्यवहारिक ढंग से पुनर्गठित कर विकास कार्यों को सुव्यवस्थित करने के प्रयास में है. प्रस्ताव के अनुसार, नई नियमावली में नक्शा पास कराने से जुड़े उपविभाजन, विकास और पर्यवेक्षण शुल्क में पूर्व की तरह 50 प्रतिशत छूट जारी रह सकती है, लेकिन नियमों के पालन को सख्ती से लागू किया जाएगा. अनियोजित निर्माण और बहुमंजिला भवनों पर सख्ती की तैयारी नए नियमों में खास तौर पर हाईवे किनारे होने वाले अनियोजित निर्माण पर नियंत्रण की योजना है. सरकार चाहती है कि प्रदेश में नियोजित शहरी विकास को बढ़ावा मिले और अव्यवस्थित निर्माणों पर अंकुश लगाया जा सके.
साथ ही, बहुमंजिला वाणिज्यिक भवनों के निर्माण को लेकर भी सख्त प्रावधान लाने की तैयारी है. अब पर्वतीय क्षेत्रों में निर्धारित ऊंचाई से अधिक भवन निर्माण के लिए संबंधित भूगर्भीय और मिट्टी की जांच रिपोर्ट अनिवार्य करनी होगी. उदाहरण के तौर पर, यदि किसी क्षेत्र में निर्धारित सीमा से अधिक ऊंचाई का भवन बनाया जाएगा तो उसके लिए आईआईटी रुड़की जैसी संस्थाओं से भूगर्भीय स्थिरता की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. सरकार का कहना है कि इन बदलावों से विकास कार्यों में पारदर्शिता बढ़ेगी, पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा और जोशीमठ जैसे क्षेत्रों में हुए अव्यवस्थित निर्माणों से भविष्य में सबक लिया जा सकेगा.








