Operation Kahuta: लकी बिष्ट जो पूर्व भारतीय जासूस, एनएसजी कमांडो और स्नाइपर हैं ने एक बड़ा बयान देते हुए ऑपरेशन कहूटा को भारत का सबसे बड़ा विफल खुफिया मिशन बताया. एक इंटरव्यू के दौरान बिष्ट ने कहा की इस मिशन के दौरान रॉ के एक पाकिस्तानी एजेंट ने पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र का पूरा ब्लूप्रिंट देने की पेशकश की थी. इसके बदले एजेंट ने महज 10000 अमेरिकी डॉलर की मांग की थी. लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री ने इसे मंजूरी नहीं दी और ऑपरेशन को रद्द कर दिया गया. लकी बिष्ट ने कहा कि इसके बाद पाकिस्तान को वह कार्यक्रम पूरा करने में मदद मिली जिसने बाद में उसे एक परमाणु शक्ति बना दिया.
लकी बिष्ट ने क्या दावे किए इंटरव्यू के दौरान लकी बिष्ट ने कहा कि अगर राजनीतिक मंजूरी और मांगी गई राशि मिल जाती तो एजेंट ब्लूप्रिंट हासिल करने में कामयाब हो जाते. इसी के साथ लकी बिष्ट ने कहा कि परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी जरूरी जानकारी हासिल करने का मौका तो खो ही दिया था लेकिन बाद में जब मोरारजी देसाई ने जिया उल हक को इस मिशन के बारे में फोन कॉल पर बता दिया तो यह मिशन पूरी तरह से फेल हो गया. इसके बाद पाकिस्तान ने वहां तैनात रॉ के सभी एजेंट्स का पता लगा लिया और उन्हें खत्म कर दिया. बिष्ट ने साफ तौर पर कहा कि उनके मुताबिक यह इंटेलिजेंस फेलियर नहीं थी यह एक लीडर का फेलियर था. बिष्ट ने कहा की ऑपरेशन कहूटा का उद्देश्य कहूटा में पाकिस्तान के चल रहे परमाणु कार्यक्रम से संबंधित जरूरी जानकारी और ब्लूप्रिंट को लाना था.
लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद इस ऑपरेशन को अचानक से रद्द कर दिया गया. उन्होंने आगे कहा कि हमारी एजेंसी ने इतनी मेहनत की थी कि वह ऑपरेशन कहूटा का खाका भी तैयार करने को तैयार थे. उन्हें पता चल गया था कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम कहां चल रहा था. मोरारजी देसाई को ठहराया जिम्मेदार बिष्ट ने मिशन के फेल होने का सीधे तौर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि रॉ ने ऑपरेशन को पूरा करने के लिए $10000 की एक छोटी सी राशि की मंजूरी मांगी थी, लेकिन उसे मना कर दिया गया.
बिष्ट ने आगे कहा कि मोरारजी देसाई ने पैसे नहीं दिए और यह सारी जानकारी जिया उल हक के साथ एक फोन कॉल पर साझा कर दी. इस फोन कॉल ने सब कुछ खत्म कर दिया. आईएसआई ने एक रात में इतने लोगों को शहीद कर दिया कि जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. क्या था ऑपरेशन कहूटा इस ऑपरेशन को भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने 1970 के दशक के अंत में चलाया था. यह एक गुप्त अभियान था जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के गोपनीय परमाणु हथियार कार्यक्रम का पता लगाना था.
दरअसल इस मिशन का नाम पाकिस्तान के कहूटा में स्थित उस खान रिसर्च लैबोरेट्रीज के नाम पर रखा गया था जहां पर यह कार्यक्रम चल रहा था. 1977 में रॉ के जासूसों ने कहूटा के आसपास कुछ अजीब चीजों को दिखा जिससे उन्हें यह पता चला कि पाकिस्तान वहां पर शायद परमाणु कार्यक्रम चल रहा है. इसके खिलाफ सबूत जुटाना के लिए रॉ एजेंट्स ने कहूटा के आसपास की नाई की दुकानों से पाकिस्तानी वैज्ञानिकों और वहां पर काम करने वाले कर्मचारियों के बालों के नमूने इकट्ठा किए थे. इन नमूनों की जब जांच की गई तो यह पता लगा कि कहूटा में परमाणु रेडिएशन मौजूद है. इसके बाद एक पाकिस्तानी एजेंट ने इस मिशन के दौरान कहूटा परमाणु संयंत्र का पूरा ब्लूप्रिंट देने की पेशकश की.
इसके लिए उसने 10000 अमेरिकी डॉलर की मांग की थी लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस मांग को मंजूरी नहीं दी.







