क्या मानसिक बीमारी के नाम पर बच सकता है बच्चों को बंधक बनाने वाला अपराधी, जानें क्या कहता है कानून?

क्या मानसिक बीमारी के नाम पर बच सकता है बच्चों को बंधक बनाने वाला अपराधी, जानें क्या कहता है कानून?
By : | Updated at : 30 Oct 2025 04:48 PM (IST)

मुंबई में गुरुवार को दिनदहाड़े एक चौंकाने वाली वारदात ने पूरे शहर को हिला दिया. आर ए स्टूडियो में हुई इस घटना ने लोगों को हैरान कर दिया, जहां एक्टिंग क्लास के दौरान बच्चों को बंधक बना लिया गया. जानकारी के मुताबिक, स्टूडियो की पहली मंजिल पर ऑडिशन चल रहे थे और करीब 100 बच्चे वहां मौजूद थे. इसी बीच स्टूडियो में काम करने वाला और यूट्यूब चैनल चलाने वाले युवक रोहित ने लगभग 15 से 20 बच्चों को कमरे में बंद कर दिया और बंधक बना लिया. फिलहाल खबर आ रही है कि पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि वह शख्स मानसिक रूप से बीमार है. आइए जानें कि अगर कोई शख्स ऐसा करता है, तो क्या उसे सजा मिल सकती है? कानून की नजर में मानसिक बीमारी और अपराध भारत के नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत, अगर कोई व्यक्ति मानसिक विक्षिप्तता के कारण अपने काम की प्रकृति या यह नहीं समझ पा रहा कि वह जो कर रहा है वह गलत है या कानून के खिलाफ है, तो धारा 22 उसे आपराधिक दायित्व से राहत देती है. यानी अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध के वक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ था और उसे सही-गलत का ज्ञान नहीं था, तो अदालत उसे सजा से छूट दे सकती है. लेकिन ध्यान रहे यह छूट हर मानसिक रोगी को नहीं मिलती है. यह तभी लागू होती है जब अपराध उसी समय व्यक्ति मानसिक असंतुलन की स्थिति में करे.

अपराध से पहले या बाद में पागलपन इस बचाव के लिए पर्याप्त नहीं है. कैसे तय होता है कि आरोपी सच में मानसिक मरीज है? सिर्फ यह कह देने से कि आरोपी मेंटली अनफिट है, बात खत्म नहीं हो जाती है. अदालत मेडिकल जांच कराती है और विशेषज्ञों की रिपोर्ट देखती है. मेडिकल बोर्ड, साइकेट्रिक रिपोर्ट्स, और डॉक्टरों की गवाही के आधार पर अदालत यह तय करती है कि अपराध के वक्त आरोपी की मानसिक स्थिति कैसी थी. अगर आरोपी मानसिक रोग से पीड़ित था, लेकिन उसे पता था कि वह क्या कर रहा है, तो उसे राहत नहीं मिलती है.

लेकिन अगर साबित हो जाए कि अपराध के समय उसका मानसिक नियंत्रण पूरी तरह खत्म था, तो उसे जेल नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान भेजा जाता है. क्या हर अपराध मानसिक बीमारी के नाम पर माफ हो सकता है? बिलकुल नहीं. भारत का कानून साफ कहता है कि मानसिक बीमारी अपराध का लाइसेंस नहीं है. मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के तहत हर व्यक्ति को इलाज का अधिकार है, लेकिन अगर बीमारी के कारण वह समाज के लिए खतरा बनता है, तो उसे नियंत्रित निगरानी में रखा जा सकता है. जो आरोपी पागलपन का नाटक करके कानून से बचने की कोशिश करते हैं, उन्हें अदालतें तुरंत पकड़ लेती हैं.

ऐसे मामलों में कानून और सख्त सजा देता है ताकि कोई भी मानसिक बीमारी का झूठा सहारा लेकर अपराध करने की हिम्मत न करे. पुलिस की कार्रवाई ऐसे मामलों में पुलिस सबसे पहले आरोपी को हिरासत में लेकर मानसिक स्वास्थ्य जांच के लिए भेजती है. अगर रिपोर्ट में मानसिक विक्षिप्तता साबित हो जाए, तो अदालत के आदेश पर आरोपी को इलाज के लिए भेजा जाता है. अगर रिपोर्ट में यह सामने आए कि आरोपी मानसिक रूप से ठीक था, तो उसके खिलाफ सामान्य अपराध की तरह चार्जशीट दायर की जाती है और ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलता है.

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