सुशीला कार्की होंगी नेपाल की अगली प्रधानमंत्री? Gen-Z की वोटिंग में मिले 58% वोट, जानें बालेन शाह कितनों की पसंद

सुशीला कार्की होंगी नेपाल की अगली प्रधानमंत्री? Gen-Z की वोटिंग में मिले 58% वोट, जानें बालेन शाह कितनों की पसंद
By : | Edited By: आशुतोष सिंह | Updated at : 10 Sep 2025 07:13 PM (IST)

नेपाल में Gen-Z आंदोलन ने तख्तापलट कर दिया है. आंदोलन के दौरान फैली हिंसा के बीच केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं. इस समय Gen-Z नेपाल के नए नेता का चुनाव करने की तैयारी कर रहे हैं. इस बीच खबर आई है कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशील कार्की देश की नई प्रधानमंत्री हो सकती हैं.

Gen-Z नेताओं ने करीब 5 घंटे तक सुशीला कार्की के साथ वर्चुअली मीटिंग की. इस दौरान देश के हालात और आने वाली चुनौतियों को लेकर चर्चा की गई. इस मीटिंग के बाद हुई वोटिंग में सुशीला कार्की को 58 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि बालेन शाह को 32 फीसदी ही वोट मिले हैं.

कौन हैं सुशीला कार्की?
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को बिराटनगर में हुआ. वे सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं. कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1979 में बिराटनगर से वकालत शुरू की. 1985 में कार्की ने महेंद्र मल्टिपल कैंपस, धरान में सहायक अध्यापक के रूप में काम किया. 2007 में वे सीनियर एडवोकेट बनीं.

सुशीला के कार्यकाल में आए कई बड़े फैसले
22 जनवरी 2009 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का एड-हॉक जज नियुक्त किया गया और 2010 में स्थायी जज बनीं. 2016 में वे नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं. यह नेपाल के लिए एक ऐतिहासिक पल था. 11 जुलाई 2016 से 7 जून 2017 तक उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की बागडोर संभाली. उनके कार्यकाल में कई बड़े फैसले हुए. 2017 में माओवादी सेंटर और नेपाली कांग्रेस ने उन पर महाभियोग प्रस्ताव लाया, जिसका देशभर में विरोध हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने संसद को रोकने का आदेश दिया और प्रस्ताव अंततः वापस लिया गया. इस प्रकरण ने उन्हें एक ऐसी शख्सियत बना दिया जो दबाव के बावजूद डटी रहीं.

नेपाली कांग्रेस के बड़े नेता हैं सुशीला कार्की के पति
कार्की की शादी दुर्गा प्रसाद सुवेदी से हुई, जिनसे वे बनारस में पढ़ाई के दौरान मिलीं. सुवेदी उस वक्त नेपाली कांग्रेस के चर्चित युवा नेता थे और पंचायती शासन के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय थे, यहां तक कि एक विमान अपहरण कांड में भी उनका नाम सामने आया था. न्यायपालिका से रिटायर होने के बाद कार्की ने लेखन भी शुरू किया. 2018 में उनकी आत्मकथा ‘न्याय’ प्रकाशित हुई और 2019 में उनका उपन्यास ‘कारा’ आया, जो बिराटनगर जेल के अनुभवों पर आधारित है.

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