सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल संकट का हवाला देते हुए भारतीय संविधान की सराहना की है. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ इन दिनों राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र को लेकर सुनवाई कर रही है. इसी के दौरान कोर्ट ने पड़ोसी देशों में हाल ही में हुए उपद्रव का जिक्र किया.
9 दिन से जारी है सुनवाई
राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा में बांधने वाले एक फैसले पर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा है. संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेज कर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से यह 14 सवाल किए हैं. उनका जवाब देने के लिए चल रही सुनवाई का बुधवार को नौवां दिन था.
नेपाल और बांग्लादेश का जिक्र
पक्ष-विपक्ष की दलीलों के बीच चीफ जस्टिस बी आर गवई ने कहा, "हमें अपने संविधान पर गर्व है. देखिए, हमारे पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है. अभी हमने नेपाल का घटनाक्रम देखा है." बेंच के एक सदस्य जस्टिस विक्रम नाथ ने इस पर कहा कि बांग्लादेश की में भी इसी तरह की घटनाएं हुई थीं.
क्या है मामला?
इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित तमिलनाडु सरकार के 10 विधेयकों को अपनी तरफ से मंजूरी दे दी थी. कोर्ट ने राज्यपाल या राष्ट्रपति के फैसला लेने की समय सीमा भी तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि अगर तय समय में वह फैसला न लें तो राज्य सरकार कोर्ट आ सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को लेकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को सवाल भेजे थे. उन पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी आर गवई ने अपनी अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच गठित की है, उसके बाकी सदस्य हैं- जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर हैं.