Bihar Elections: बिहार की राजनीति में मशहूर हैं ये नारे, एक का कनेक्शन तो लालू के साथ

Bihar Elections: बिहार की राजनीति में मशहूर हैं ये नारे, एक का कनेक्शन तो लालू के साथ
By : | Updated at : 10 Oct 2025 11:13 AM (IST)
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This article highlights: Bihar Elections: बिहार की राजनीति में मशहूर हैं ये नारे, एक का कनेक्शन तो लालू के साथ. In context: Bihar Elections: बिहार में सियासत का तापमान एक बार फिर उबलने लगा है गलियों से लेकर चौपालों तक अब सिर्फ एक ही चर्चा है, कौन बनाएगा पटना की गद्दी पर कब्जा? चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान कर दिया है और इसके साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का शंखनाद हो चुका है. Stay tuned with The Headline World for more insights and details.

Bihar Elections: बिहार में सियासत का तापमान एक बार फिर उबलने लगा है. गलियों से लेकर चौपालों तक अब सिर्फ एक ही चर्चा है, कौन बनाएगा पटना की गद्दी पर कब्जा? चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान कर दिया है और इसके साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का शंखनाद हो चुका है. नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे बड़े चेहरे मैदान में उतरने को तैयार हैं. हवा में अब नारे गूंज रहे हैं, पोस्टर लगने शुरू हो गए हैं और जनता अपने-अपने हिसाब से जोड़-घटाना करने लगी है.

बिहार की राजनीति में नारेबाजी हमेशा से असरदार रही है. नारे का आलम तो यह रहा है कि बिहार में 1967 के चुनाव का पूरा परिदृश्य ही बदल गया था. आइए बिहार की राजनीति के कुछ प्रासंगिक नारों के बारे में जान लेते हैं जिन्होंने 1950 से लेकर 1990 के दशक तक बिहार की चुनावी राजनीति में इतिहास रचा.

1952 के पहले विधानसभा का नारा

1950 से 1960 के दशक में जब देश आजादी के बाद नई राह पर था, तब बिहार में भी भावनात्मक और नीतिगत नारों का दौर शुरू हुआ. कांग्रेस ने 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में नारा दिया, “खरो रुपयो चांदी को, राज महात्मा गांधी को.” यह नारा आजादी के बाद गांधीवादी सोच और ईमानदार शासन की उम्मीद को दर्शाता था. लेकिन वामपंथी दलों ने इसका जवाब दिया, “देश की जनता भूखी है, यह आजादी झूठी है.” यह नारा तत्कालीन आर्थिक असमानता और जनता की तकलीफों पर चोट करता था. इसी दौर में “इंकलाब जिंदाबाद” जैसे क्रांतिकारी नारों ने भी चुनावी रंग लिया.

जब नारों में दिखा तंज का पुट

1962 तक आते-आते नारों में समाजिक न्याय, विकास और नैतिक मूल्यों की गूंज सुनाई देने लगी, “नेहरू राज की एक पहचान और नंगा-भूखा हिंदुस्तान” या “मांग रहा है हिंदुस्तान, रोटी, कपड़ा और मकान.” इन नारों ने आम आदमी की जरूरतों को राजनीति के केंद्र में ला दिया. 1967 का चुनाव बिहार की राजनीति में नारेबाजी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. इस बार नारों में तंज और व्यंग्य का पुट दिखा. पहली बार किसी मुख्यमंत्री पर “गली-गली में शोर है, मुख्यमंत्री चोर है” जैसे तीखे नारे लगे. आगे चलकर इसी शब्द “चोर” ने भारतीय राजनीति में स्थायी जगह बना ली. 90 के दशक में “चारा चोर”, फिर 2019 में “चौकीदार चोर है” और आज के दौर में “वोट चोर” जैसे नारों तक यह परंपरा जारी है.

पिछड़े वर्गों की हिस्सेदारी वाला नारा

इसी दौर में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी यानी संसोपा ने पिछड़े वर्गों की हिस्सेदारी को लेकर बड़ा नारा दिया, “संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ.” यह नारा समाजवादी आंदोलन का आधार बना और राजनीति में सामाजिक न्याय की दिशा तय की. 1967 में अंग्रेजी के खिलाफ भावना भी चुनावी नारे का हिस्सा बनी. उस दौर में संसोपा ने जनता से वादा किया कि अगर सरकार बनी तो मैट्रिक से “कंपल्सरी इंग्लिश” हटाई जाएगी. बाद में जब महामाया प्रसाद सिन्हा की अगुवाई में संविद सरकार बनी और कर्पूरी ठाकुर शिक्षा मंत्री बने, तो उन्होंने इस वादे को सच कर दिखाया.

जब नारों की ताकत से दो बार जीतीं इंदिरा गांधी

1980 के दशक में राजनीति और साहित्य का संगम दिखाई दिया. कवि श्रीकांत वर्मा ने इंदिरा गांधी के लिए लिखा, “जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर.” यह नारा सिर्फ शब्दों का मेल नहीं था, बल्कि जनता की एकजुटता का प्रतीक बन गया था. इसी नारे की ताकत से इंदिरा गांधी ने 1977 की हार के बाद 1980 में फिर सत्ता हासिल की थी.

…तब तक रहेगा बिहार में लालू

1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के दौर में राजनीति का अंदाज तो पूरी तरह से बदल गया. 1991 में जब ताड़ी (घरेलू शराब) पर से टैक्स हटाया गया, तो विपक्ष ने तंज कसते हुए नारा दिया, “लालू, वीपी, रामविलास, एक रुपया में तीन गिलास.” यह नारा लोगों के बीच तुरंत मशहूर हो गया. वहीं 1997 में जब लालू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वे जेल जाने वाले थे, तब उन्होंने खुद कहा, “जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू.” यह नारा उनके समर्थकों के बीच जोश और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक बन गया.

रामविलास पासवान के यादगार नारे

रामविलास पासवान ने भी अपने राजनीतिक करियर में कई यादगार नारे दिए. 1990 के दशक में पटना के गांधी मैदान की एक रैली में जब उनके हेलिकॉप्टर को देखकर लालू बोले, “ऊपर आसमान, नीचे पासवान,” तो यह लाइन तुरंत लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गई. बाद में समर्थकों ने इसे और संवारते हुए कहा, “धरती गूंजे आसमान, रामविलास पासवान.” इन नारों ने यह साबित किया कि बिहार की राजनीति में सिर्फ नेता नहीं, बल्कि जनता की आवाज भी बोलती है.

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