सुप्रीम कोर्ट देश की सबसे बड़ी अदालत है और इसके प्रमुख यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को न्यायपालिका का सबसे बड़ा पद माना जाता है. उनके पास न केवल अदालत के प्रशासनिक और न्यायिक कामकाज की पूरी जिम्मेदारी होती है, बल्कि यह पद इतना प्रभावशाली होता है कि इसकी गरिमा को देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बनाए रखते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि देश के सबसे शक्तिशाली न्यायाधीश को अगर किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाए तो क्या उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर सकती है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर सीजेआई की ताकत कितनी होती है और क्या सीजेआई को भी पुलिस गिरफ्तार कर सकती है?कितनी होती है सीजेआई की ताकत? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को संविधान के तहत बहुत जरूरी अधिकार मिले हुए हैं. वह सुप्रीम कोर्ट की कार्य प्रणाली तय करने और यह निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होते हैं कि कौन सा मामला किस बेंच में जाएगा.
इसके अलावा सीजेआई न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में भी अहम भूमिका निभाते हैं. वहीं सीजेआई की राय और साइन के बिना सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति संभव नहीं होती है. सीजेआई संवैधानिक बेंचों का गठन भी करते हैं और यह तय करते हैं कि कौन से मामलों की तत्काल सुनवाई की जानी चाहिए और कौन से मामलों की सुनवाई बाद में होनी चाहिए. इसके अलावा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तीन जजों की बेंच में बैठते हैं, जिससे उनके निर्णय का प्रभाव दूसरी बेंचों से ज्यादा होता है. क्या सीजेआई या कोई जज हो सकता है गिरफ्तार? भारतीय संविधान के कानून के अनुसार जज को गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन सामान्य नागरिक की तरह नहीं.
दरअसल भारत में न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए जजों की गिरफ्तारी के लिए विशेष प्रावधान और प्रक्रिया तय की गई है. भारत में जजों को कानूनी सुरक्षा दी गई है, ताकि वह बिना किसी दबाव या डर के न्याय कर सके. लेकिन अगर कोई जज अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है या किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल पाया जाता है, तो उन पर कानून उसी तरह लागू होता है. जैसे किसी दूसरे नागरिक पर होता है. बस इसकी प्रक्रिया अलग होती है.
कौन से कानून करते हैं जज की रक्षा? Judicial Officers Protection Act, 1850- यह कानून उन जजों की रक्षा करता है जो निष्पक्ष होकर न्याय करते हैं. The Judges (Protection) Act, 1985- यह अधिनियम जजों को नागरिक और आपराधिक मामलों में एक्स्ट्रा सुरक्षा देता है. CrPC धारा 77- अगर कोई न्यायाधीश अपनी न्यायिक क्षमता और निष्पक्ष होकर कोई कार्य करता है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा. CrPC 345- किसी न्यायाधीश का अपमान करना या अदालत की कार्यवाही में बाधा डालना अपराध माना जाता है. The Judges Inquiry Act, 1968- यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही और जांच की प्रक्रिया बताता है.








