कुतुबमीनार के अंदर कितनी सीढ़ियां? नहीं जानते होंगे 44 साल से बंद इस इमारत का यह राज

कुतुबमीनार के अंदर कितनी सीढ़ियां? नहीं जानते होंगे 44 साल से बंद इस इमारत का यह राज
By : | Updated at : 29 Oct 2025 02:12 PM (IST)

दिल्ली की हवा में इतिहास घुला है, लाल किला, हुमायूं का मकबरा, इंडिया गेट… और इन सबके बीच खड़ी है कुतुबमीनार, जो न सिर्फ एक इमारत है बल्कि भारत की वास्तुकला की जीती-जागती कहानी है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि लोग इसे बाहर से तो रोज देखते हैं, मगर इसके भीतर कितनी सीढ़ियां हैं, यह रहस्य शायद ही कोई जानता हो. चलिए आज इसके बारे में जानते हैं. क्यों 44 साल से बंद है यह इमारत? कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 में शुरू करवाया था और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसे पूरा किया था. करीब 73 मीटर ऊंची यह मीनार लाल और बलुआ पत्थरों से बनी है.

लेकिन सवाल उठता है कि अगर यह इमारत इतनी खूबसूरत है तो अंदर जाना मना क्यों है? असल में, 1981 में एक दर्दनाक हादसा हुआ था. उस वक्त गर्मी की छुट्टियों में बच्चों का एक स्कूल ग्रुप घूमने आया था. किसी तकनीकी खराबी के कारण मीनार के अंदर बिजली चली गई, अंधेरा हो गया और अफरा-तफरी में भगदड़ मच गई. उस हादसे में कई लोगों की जान चली गई. तभी से सरकार ने कुतुबमीनार के अंदर प्रवेश पर रोक लगा दी थी.

दीवारों पर लिखी हैं कुरान की आयतें तब से लेकर आज तक यानी 44 सालों से इसके अंदर कोई आम नागरिक नहीं जा सका है. केवल पुरातत्व विभाग और सुरक्षा अधिकारी ही जरूरत पड़ने पर अंदर जाते हैं. मीनार की खास बात यह भी है कि यह विश्व की सबसे ऊंची ईंटों से बनी मीनार है. इसकी दीवारों पर कुरान की आयतें उकेरी गई हैं, जो इसकी इस्लामी स्थापत्य कला को और भी शानदार बनाती हैं. ऊपर से देखने पर इसका हर मंजिल का घेरा कम होता जाता है, जिससे यह दूर से देखने पर और भी ऊंची लगती है.

कुतुब मीनार में कितनी सीढ़ियां हैं? आज यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और हर साल लाखों पर्यटक इसे देखने आते हैं. अब सवाल है कि इसके अंदर कितनी सीढ़ियां हैं. इमारत के अंदर 379 सीढ़ियां हैं. जी हां, इतनी लंबी चढ़ाई कि ऊपर पहुंचते-पहुंचते सांस फूल जाए. कुतुब मीनार के भीतर की खामोशी, वो अंधेरा, और वो बंद दरवाजे आज भी उस हादसे की कहानी बयां करते हैं.

अगर आप कभी कुतुबमीनार जाएं तो एक बार ठहरकर ऊपर देखिएगा और सोचिएगा कि कभी लोग इन सीढ़ियों पर चढ़कर दिल्ली को आसमान से देखने का सपना देखा करते थे.

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