Jammu Kashmir News: उमर अब्दुल्ला सरकार ने बढ़ाया हिंदी का दायरा, जम्मू-कश्मीर में त्रिभाषी सिस्टम किया लागू

Jammu Kashmir News: उमर अब्दुल्ला सरकार ने बढ़ाया हिंदी का दायरा, जम्मू-कश्मीर में त्रिभाषी सिस्टम किया लागू
By : | Updated at : 29 Oct 2025 02:07 PM (IST)

जम्मू-कश्मीर में अब प्रशासनिक कामकाज में हिंदी की मौजूदगी तेजी से बढ़ रही है. उमर अब्दुल्ला सरकार ने सरकारी विभागों की वेबसाइटों और पोर्टल्स को हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी- तीनों भाषाओं में उपलब्ध कराने की दिशा में कदम बढ़ाया है. सरकार ने विधानसभा में बीजेपी विधायक रणबीर सिंह पठानिया के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि जम्मू-कश्मीर ऑफिशियल लैंग्वेजेज एक्ट, 2020 के प्रावधानों को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं. 3 भाषाओं में होंगी सरकारी वेबसाइट जानकारी के अनुसार, सभी विभागों की वेबसाइटें और पोर्टल अब हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में उपलब्ध कराए जा रहे हैं. हिंदी में प्राप्त होने वाले आधिकारिक पत्रों का जवाब हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दिया जाता है.

साल 2022 में गठित समिति ने उन क्षेत्रों की पहचान करने का रोडमैप तैयार किया है, जहां हिंदी, उर्दू, कश्मीरी, डोगरी और अंग्रेजी का उपयोग प्रशासनिक कामों में किया जाएगा. यह रिपोर्ट फिलहाल वित्त विभाग की कुछ स्पष्टीकरणों के इंतजार में विचाराधीन है. सरकारी दफ्तरों में बढ़ेगा हिंदी का इस्तेमाल सरकार ने कहा कि हिंदी को सरकारी कामकाज में सहज रूप से अपनाने के लिए एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया जा रहा है, जिससे भाषा सेल्स की कार्यप्रणाली और भाषाई प्रथाओं का आकलन किया जा सके. सभी विभागों में ई-ऑफिस सिस्टम पहले से सक्रिय है, जिसमें हिंदी संदर्भों और टेम्पलेट्स के लिए सॉफ्टवेयर मॉड्यूल मौजूद हैं. सरकारी कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल और वर्कशॉप्स आयोजित की जाएंगी ताकि वे नियमित पत्राचार में हिंदी का सहज प्रयोग कर सकें.

इसके अलावा, केंद्र शासित प्रदेश के सार्वजनिक पुस्तकालयों में आधिकारिक भाषाओं के लिए समर्पित सेक्शन भी बनाए जा रहे हैं. मंत्री ने कहा कि भर्ती नियमों में हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में दक्षता को शामिल करने पर विचार चल रहा है, जिससे सभी भाषाओं को समान अवसर मिले. उर्दू से हिंदी तक का सफर 1889 में महाराजा प्रताप सिंह ने फारसी को हटाकर उर्दू को जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा घोषित किया था. स्वतंत्रता के बाद तक उर्दू और अंग्रेज़ी प्रशासन की प्रमुख भाषाएं रहीं. लेकिन 2019 में विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद 2020 में लागू जम्मू-कश्मीर ऑफिशियल लैंग्वेजेज एक्ट ने नई दिशा दी.

इस अधिनियम के तहत अब कश्मीरी, डोगरी, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी- 5 भाषाएं आधिकारिक रूप से मान्य हैं. सरकार ने बताया कि विभागों में नई भाषाओं को शामिल कर कामकाज को अधिक समावेशी और सुलभ बनाया जा रहा है. यह न केवल भाषाई संतुलन का प्रतीक है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता की दिशा में भी बड़ा कदम है. संस्कृत को लेकर भी योजना सरकार ने बताया कि भविष्य में संस्कृत के प्रोत्साहन के लिए एक अलग बोर्ड या अकादमी स्थापित करने पर भी विचार किया जा रहा है. मंत्री ने कहा, “संस्कृत और अन्य शास्त्रीय भाषाओं के संवर्धन के लिए समर्पित बोर्ड की स्थापना आवश्यकता और छात्रों की संख्या को ध्यान में रखकर की जाएगी.

सरकार ऐसी सभी पहलों को समर्थन देगी जो शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए हों. ” उन्होंने जोड़ा कि ई-ऑफिस सिस्टम से प्रशासनिक कामकाज में एकरूपता, दक्षता और पारदर्शिता आई है, जो हिंदी और अन्य भाषाओं के प्रयोग को और सहज बना रहा है. उर्दू साइनबोर्ड नहीं हटाने पर सरकार ने दी सफाई वहीं, जम्मू और श्रीनगर स्थित सिविल सचिवालय भवनों से उर्दू भाषा के साइनबोर्ड नहीं हटाए गए हैं. इस पर सरकार ने कहा कि वर्तमान में सभी सरकारी चेंबरों और कार्यालयों में उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी तीनों भाषाओं में नामपट्टिकाएं (ट्राईलिंगुअल नेमप्लेट्स) प्रदर्शित की गई हैं. यह कदम सभी आधिकारिक भाषाओं के प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक एकरूपता बनाए रखने के लिए उठाया गया है.

तीनों भाषाओं में एकरूपता, पुनःस्थापना की जरूरत नहीं- एस्टेट्स विभाग विधानसभा में शेख खुर्शीद अहमद के प्रश्न के लिखित उत्तर में एस्टेट्स विभाग ने कहा कि निर्धारित मानकों के अनुसार सचिवालय के हर कक्ष के बाहर त्रिभाषी बोर्ड लगाए गए हैं. विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि “यह तथ्यात्मक नहीं है कि सचिवालय के प्रवेश द्वारों या चेंबरों से उर्दू साइनबोर्ड हटाए गए हैं. ” सरकार ने आगे कहा कि चूंकि वर्तमान नामपट्टिकाओं में उर्दू पहले से प्रदर्शित है, इसलिए पुनःस्थापना का कोई प्रश्न नहीं उठता. विभाग के अनुसार, यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि सभी आधिकारिक भाषाएँ समान रूप से सम्मानित रहें और प्रशासनिक संकेतक एक समान दिखें.

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