बिहार में चुनावी गर्मी चरम पर है, लेकिन रोमांच कहीं और ज्यादा है, राजस्थान के मशहूर फलोदी सट्टा बाजार में. यहां दांव के रेट इतने तेजी से बदल रहे हैं जैसे पटना की गलियों में ट्रैफिक लाइट हर पल रंग बदलती हो. फिलहाल फलोदी सट्टा बाजार का मूड साफ है, NDA के पक्ष में हरी झंडी लहराती दिख रही है. सटोरिए एनडीए की जीत पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं और उसी पर सबसे ज्यादा दांव लगाए जा रहे हैं. चलिए इस सट्टा बाजार का इतिहास जानते हैं कि यहां किन-किन चीजों पर सट्टा लगाया जाता है.
भारत में जहां हर खबर, हर चर्चा और हर मुकाबले को लेकर लोगों में उत्सुकता होती है, वहीं राजस्थान का फलोदी सट्टा बाजार इस जिज्ञासा को दांव में बदल देता है. यह कोई आम बाजार नहीं, बल्कि अनुमानों का अखाड़ा है, जहां किस्मत और जोखिम का खेल चलता है. चुनाव हों, क्रिकेट मैच हो या बारिश की बूंदें, यहां सब पर दांव लगते हैं. फलोदी का सट्टा सदियों पुरानी परंपरा कहा जाता है कि फलोदी में सट्टेबाजी की शुरुआत करीब 450-500 साल पहले हुई थी, जब यह एक छोटा सा गांव था. तब सट्टा कुछ यूं होता था, लोग इस पर दांव लगाते थे कि जूता उछालने पर सीधा गिरेगा या उल्टा, या दो सांडों की लड़ाई में कौन जीतेगा.
धीरे-धीरे यह खेल मनोरंजन से निकलकर एक संगठित परंपरा में बदल गया. आज यह इतना बड़ा हो चुका है कि इसे देश के सबसे पुराने और भरोसेमंद सट्टा बाजारों में गिना जाता है. आजादी के बाद राजनीति में एंट्री आजादी के बाद जब भारत में लोकतंत्र की शुरुआत हुई, तो फलोदी के सट्टा बाजार ने भी अपना रुख राजनीति की ओर मोड़ लिया. कौन सी पार्टी सरकार बनाएगी, किस सीट से कौन जीतेगा, किस उम्मीदवार की लहर चलेगी, सब पर यहां सट्टा लगता है. आज स्थिति यह है कि चुनाव आयोग से पहले फलोदी का सट्टा बाजार यह बता देता है कि किसकी सरकार बन सकती है.
क्रिकेट और फलोदी का कनेक्शन जब देश में क्रिकेट का जुनून बढ़ा, तो फलोदी का बाजार भी मैदान में उतर आया. अब यहां हर बॉल पर सट्टा लगता है कि कौन रन बनाएगा, कौन आउट होगा, कौन सेंचुरी मारेगा या कौन टीम हारेगी. मैच का ओवर शुरू होने से पहले यहां दांव लग जाते हैं और ओवर खत्म होने से पहले भाव बदल जाते हैं. यही वजह है कि दुनिया भर के सटोरिए फलोदी के भावों पर नजर रखते हैं. सट्टे के अनोखे किस्से फलोदी में सिर्फ बड़े इवेंट ही नहीं, बल्कि अजीबोगरीब चीजों पर भी सट्टा लगता है.
किसी समय यहां इस पर भी दांव लगते थे कि बारिश होगी या नहीं, या छत की नाली से पानी बहेगा या नहीं. यानी यहां सट्टा किसी तर्क या सीमा में नहीं बंधा है, बस लोगों की जिज्ञासा और जोश ही इसका इंजन है.








