Supreme Court: न्याय में 37 साल की देरी! 50 रुपये की रिश्वत के बाद सस्पेंड हुआ था TTE, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

Supreme Court: न्याय में 37 साल की देरी! 50 रुपये की रिश्वत के बाद सस्पेंड हुआ था TTE, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
By : | Edited By: सौरभ कुमार | Updated at : 29 Oct 2025 03:29 PM (IST)

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में उस रेलवे टिकट परीक्षक (TTE) को बरी कर दिया, जिस पर तीन दशक पहले 50 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था. यह फैसला साबित करता है कि भले ही न्याय मिलने में देरी हो, लेकिन सत्य अंततः जीतता ही है. अदालत ने कहा कि दिवंगत अधिकारी VM सौदागर निर्दोष थे और उनके परिवार को पेंशन और बाकी सेवा लाभ तीन महीने के भीतर दिए जाएं. मई 1988 में दादर–नागपुर एक्सप्रेस में ड्यूटी पर तैनात TTE VM सौदागर पर रेलवे सतर्कता टीम ने आरोप लगाया कि उन्होंने तीन यात्रियों से सीट आवंटन के लिए पचास रुपये की रिश्वत मांगी. विभाग ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की और 1996 में उन्हें नौकरी से हटा दिया.

यह वही क्षण था, जब एक ईमानदार अधिकारी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई. CAT से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर बर्खास्तगी के बाद सौदागर ने अपना पक्ष केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में रखा. वर्ष 2002 में ट्रिब्यूनल ने कहा कि रिश्वत के आरोपों को साबित करने वाले कोई ठोस सबूत नहीं हैं और उनकी सेवा बहाल की जानी चाहिए, लेकिन रेलवे ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी. मामला वर्षों तक वहीं अटका रहा और इस बीच सौदागर का निधन हो गया. परिवार ने फिर भी हार नहीं मानी और न्याय की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

सुप्रीम कोर्ट का रुख साक्ष्य नहीं तो अपराध नहीं सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने विस्तार से रिकॉर्ड की समीक्षा की और पाया कि जांच अधूरी थी. यात्रियों के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि उनमें से एक की गवाही ली ही नहीं गई और बाकी दो ने भी किसी रिश्वत की पुष्टि नहीं की. अदालत ने यह भी माना कि सौदागर ने यात्रियों से सिर्फ यह कहा था कि वे अन्य कोचों की जांच पूरी करने के बाद उनकी राशि लौटाएंगे, जो रेलवे की सामान्य प्रक्रिया है. इस आधार पर न्यायालय ने कहा कि बर्खास्तगी अनुचित और अवैधानिक थी. परिवार को मिलेगा पूरा हक फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि सौदागर के उत्तराधिकारियों को सभी लंबित वित्तीय लाभ, पेंशन और ग्रेच्युटी तुरंत दी जानी चाहिए.

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जब किसी कर्मचारी के खिलाफ ठोस सबूत न हों तो केवल संदेह के आधार पर की गई कार्रवाई न्याय नहीं अन्याय है.

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