सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य करने का आदेश जारी किया है. इस आदेश ने प्रदेशभर के शिक्षकों में बड़ी चिंता पैदा कर दी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन शिक्षकों की नौकरी में पांच साल से अधिक सेवा शेष है, उनके लिए टीईटी परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा.
अगर ऐसा नहीं किया गया तो उन्हें या तो इस्तीफा देना होगा या फिर अनिवार्य सेवानिवृत्ति (कंपल्सरी रिटायरमेंट) लेनी पड़ेगी. अब शिक्षकों के मन में सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अगर परिक्षा पास नहीं कर पाए तो क्या होगा.
आदेश पर उठने लगे सवाल
इस आदेश के बाद सवाल उठने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश के दो लाख से ज्यादा शिक्षकों का भविष्य क्या होगा. कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाने वाले भरोसा स्थित मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट स्कूल के प्रधानाचार्य वीरेंद्र सिंह भी इसी चिंता में हैं. वह 1991 में शिक्षक बने थे, उस समय उनकी योग्यता इंटरमीडिएट थी.
अब जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है तो उनके माथे पर चिंता की लकीरें हैं. जिम्मेदारी सिर पर है और नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है. नौकरी के केवल आठ साल बचे हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें.
लाखों शिक्षक जूझ रहे
यह परेशानी केवल वीरेंद्र सिंह की नहीं है बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के दो लाख से अधिक शिक्षक इस स्थिति से जूझ रहे हैं. इन्हीं में से एक महिला शिक्षक सविता सिंह हैं. वह बीएससी और बीएड की डिग्री धारक हैं.
उनका कहना है कि नौकरी के इतने साल बाद अगर टीईटी परीक्षा में असफल हो गए तो फिर क्या होगा. इसी तरह संजय कुमार पांडेय, जो 1999 में खेल शिक्षक बने, भी परेशान हैं. उनके पास बीपीएड की डिग्री है लेकिन वर्तमान नियमों के अनुसार वे टीईटी परीक्षा देने के पात्र नहीं हैं.
रिटायरमेंट के नजदीक हैं सैकड़ों शिक्षक
लिहाजा अब उन्हें भी समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या होगा. बीपीएड एलटी ग्रेड के कई शिक्षक टीईटी देने की पात्रता नहीं रखते हैं और उनमें से सैकड़ों शिक्षक ऐसे हैं जो रिटायरमेंट के नजदीक हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित दिखाई दे रहा है.
जिन शिक्षकों ने वर्षों तक बच्चों को पढ़ाया, वे अब नौकरी बचाने के लिए परीक्षा पास करने की चिंता में डूबे हैं. आदेश के बाद प्रदेशभर के शिक्षक संगठन भी सक्रिय हो गए हैं और सरकार से इस पर ठोस समाधान निकालने की मांग कर रहे हैं.