सुप्रीम कोर्ट ने दो पड़ोसनों की लड़ाई में एक महिला के सुसाइड किए जाने को लेकर अहम टिप्पणी की है. मंगलवार (9 सितंबर, 2025) को कोर्ट ने कहा कि पड़ोसियों के बीच बहस या हाथापाई जैसी घटनाएं भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आतीं. कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले में की है, जिसमें एक महिला को कर्नाटक हाईकोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई है. हाईकोर्ट का मानना है कि दो पड़ोसनों के मामूली विवाद में आरोपी महिला के उत्पीड़न की वजह से दूसरी महिला ने आत्महत्या कर ली.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 लागू करने के लिए यह जरूरी है कि अभियुक्त ने आत्महत्या के लिए पीड़ित को उकसाया हो, सहायता की हो या उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित किया हो. कोर्ट ने कहा, 'अपने पड़ोसी से प्रेम करो, यह एक आदर्श स्थिति है, लेकिन पड़ोस में झगड़े समाज के लिए कोई नई बात नहीं हैं. ऐसे झगड़े सामुदायिक जीवन में आम हैं. सवाल यह है कि क्या तथ्यों के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनता है?'
कोर्ट ने कहा कि भले ही अपीलकर्ता और पीड़िता के परिवारों के बीच संबंध तनावपूर्ण थे, उनमें कहासुनी होती रहती थी, लेकिन उसे नहीं लगता कि अपीलकर्ता ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पीड़िता को आत्महत्या के लिए उकसाया या उसकी ऐसी कोई मंशा थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसे झगड़े रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, और तथ्यों के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि अपीलकर्ता ने ऐसा कुछ किया, जिससे पीड़िता को आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता न दिखा हो.'
सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें हाईकोर्ट ने आरोपी महिला को आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया था, लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2) (वी) के आरोप से बरी कर दिया था.
यह मामला 2008 का है, जिसमें आरोपी महिला और पीड़िता के बीच एक मामूली विवाद शुरू हुआ था जो लगभग छह महीने तक चला. आरोप है कि पीड़िता एक टीचर थीं, जो आरोपी की ओर से लगातार किए जा रहे उत्पीड़न को सहन नहीं कर सकी और उसने आत्महत्या कर ली.