मुख्यमंत्री ने कहा कि मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है. अगर कोई मनुष्य अयोग्य है तो मानकर चलिए उसे योग्य योजक नहीं मिला. योग्य गुरु मिलने पर मनुष्य अयोग्य हो ही नहीं सकता. इस परिप्रेक्ष्य में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की सर्वस्वीकार्य प्रतिष्ठा सुयोग्य योजक की है.
सीएम योगी को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 56वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 11वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोह के अंतर्गत बुधवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपनी भावाभिव्यक्ति कर रहे थे. ‘अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्, अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः’ का उद्धरण देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जिसमें मंत्र बनने का सामर्थ्य न हो. ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जिसमें औषधीय गुण न हो. ऐसे ही कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं होता, जरूरत होती है व्यक्ति की योग्यता को पहचान कर उसे सही दिशा देने वाले गुरु की. गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंतद्वय ने सदैव योजक की भूमिका का निर्वहन कर समाज और राष्ट्र को दिशा दिखाई. पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था.
साधु अकेला, समाज उसका परिवार, सनातन ही उसकी जाति- सीएम
मुख्यमंत्री ने कहा कि साधु अकेला होता है. समाज उसका परिवार, राष्ट्र उसका कुटुंब होता है और उसकी जाति सिर्फ सनातन होती है. उन्होंने कहा कि संतों के संकल्प में पवित्रता, दृढ़ता होती है, संकल्प में उसकी साधना के अंश होते हैं. और, जब सच्चा संत कोई संकल्प लेता है, तो उसके परिणाम अवश्य आते हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ऐसे ही संकल्पों वाले संत थे. अयोध्या के श्रीराम मंदिर निर्माण के उनके संकल्प और संकल्प के प्रति किए गए संघर्ष का परिणाम आज पूरी दुनिया के सामने है.
मुख्यमंत्री ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की पुण्य स्मृति को नमन करते हुए कहा कि महंतश्री का जन्म इतिहास प्रसिद्ध मेवाड़ की उस कुल परंपरा में हुआ था जिसने विदेशी आक्रांताओं के सामने कभी समर्पण नहीं किया. वह हिंदुआ सूर्य महाराणा प्रताप की परंपरा से गोरखपुर आए. उनका जीवन सिर्फ आध्यात्मिक उन्नयन तक सीमित नहीं रहा बल्कि उन्होंने धर्म के अभ्युदय के साथ समाज और राष्ट्र के हित में सांसारिक उत्कर्ष को भी शिक्षा और सेवा के माध्यम से आमजन के लिए महत्व दिया. यही कार्य महंत अवेद्यनाथ ने भी किया। सीएम योगी ने कहा कि सच्चा साधु धर्म के अभ्युदय और निः श्रेयस, दोनों को साथ लेकर चलता है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी थे. उन्होंने इसे सनातन परंपरा के वैभवशाली मंदिर के रूप में स्थापित किया. इसके साथ ही उनकी ख्याति पूर्वी उत्तर प्रदेश में शैक्षिक क्रांति के पुरोधा के रूप में भी है. 1932 में उन्होंने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना के साथ ही गोरखपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने का संकल्प लिया था. देश की आजादी के बाद जब गोरखपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात आगे बढ़ी तो बहुत से लोग पीछे हट गए. तब महंत दिग्विजयनाथ ने अपने दो डिग्री कॉलेज दान में देकर विश्वविद्यालय की स्थापना सुनिश्चित कराई. उन्होंने बालिका शिक्षा के केंद्र को भी स्थापित करने का संकल्प बालिका विद्यालय बनवाकर पूरा किया.
गुलामी के प्रतीकों को हटाने का लिया था संकल्प- सीएम
सीएम योगी ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने गुलामी के प्रतीकों का हटाने का संकल्प लिया था. अयोध्या में गुलामी की निशानी ढांचे को हटाकर भव्य श्री बनाना उनका और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का संकल्प और सपना था. आज दोनों आचार्यों का यह संकल्प गुलामी के निशान को हटाकर पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि आज ऐसा कौन भारतीय होगा जिसे अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर देखकर गर्व न होता हो। कोई ऐसा होगा तो उसके भारतीय होने पर ही संदेह होगा.
सीएम योगी ने प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए विकसित भारत के उद्घोष का भी उल्लेख किया. कहा कि विकसित भारत केवल राजनीतिक संकल्प नहीं है बल्कि यह भारत और भारतीयता का मंत्र है. वसुधैव कुटुम्बकम की दृष्टि से कभी भारत ने दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराया था. कोई आपस में लड़े न, यह भारत की परंपरा है. ऐसा फिर से हो, इसके लिए विकसित और आत्मनिर्भर भारत की आवश्यकता है. इसलिए, हर भारतीय को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ना होगा. उन्होंने कहा कि जब संकल्प अंतःकरण से होता है तो वह अवश्य पूरा होता है.
परंपरा हमारी विरासत, सीख लेने की जरूरत -सीएम
मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरक्षपीठ में पूज्य आचार्यों की स्मृति में साप्ताहिक आयोजन पीठ की परंपरा का हिस्सा है. मंदिर के अलावा आज महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की सभी संस्थाओं में भी पूज्य आचर्यद्वय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आयोजन हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि परंपरा हमारी विरासत होती है और वर्तमान और भावी पीढ़ी को इसके जरिये प्रेरणा और सीख लेने की जरूरत होती है. विरासत के संदर्भ में उन्होंने अखंड भारत में दुनिया के पहले विश्वविद्यालय, प्रभु श्रीराम के भाई भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय का उल्लेख भी किया. बताया कि पाणिनि का व्याकरण इसी तक्षशिला विश्वविद्यालय से आगे बढ़ा. महर्षि सुश्रुत और चरक जैसे आयुर्वेद के जनक इसी विश्वविद्यालय से निकले. आयुर्वेद, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, कृषि सहित अनेक क्षेत्रों के लिए यही प्राचीनतम विश्वविद्यालय रहा.