मालेगांव ब्लास्ट केस 2008 के पीड़ित परिवारों ने मंगलवार (9 सितंबर) को स्पेशल कोर्ट के फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया है. 31 जुलाई 2025 को स्पेशल कोर्ट ने बीजेपी नेता प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और पांच अन्य को बरी कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ अब पीड़ित परिवारों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. निसार अहम सैय्यद बिलाल और पांच अन्य ने वकील मतीन शेख के जरिए अपील दाखिल की और हाई कोर्ट से स्पेशल कोर्ट के फैसले को रद्द करने की अपील की है.
स्पेशल एनआईए कोर्ट का फैसला गलत- याचिकाकर्ता
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में विस्फोट हो गया था. इस हादसे में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि स्पेशल एनआईए कोर्ट का सातों आरोपियों को बरी करने का फैसला कानूनी दृष्टि से गलत है इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए.
स्पेशल कोर्ट ने फैसले में क्या कुछ कहा था?
स्पेशल कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सिर्फ शक वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता और दोषसिद्धि के लिए कोई ठोस या विश्वसनीय सबूत नहीं है. फैसले में कहा गया था कि आरोपियों के खिलाफ कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है, जिससे मामले को संदेह से परे साबित किया जा सके. प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित के अलावा मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी को कोर्ट ने बरी करने का फैसला सुनाया था.
मुझे यातना का सामना करना पड़ा- प्रज्ञा ठाकुर
आरोपियों में शामिल रहीं प्रज्ञा ठाकुर ने यह दावा किया था कि उन्हें जांच एजेंसियों की ओर से प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था. साध्वी प्रज्ञा ने एक बयान में कहा था, हां, मुझे मजबूर किया गया था. मैं दबाव में नहीं आई और मैंने किसी का नाम नहीं लिया, किसी को झूठा नहीं फंसाया. इसलिए, मुझे बहुत प्रताड़ित किया गया. 17 साल तक अपमान और यातना का सामना करना पड़ा.